कुल्लू घाटी के एकमात्र शहीद कुंवर प्रताप सिंह

08 Aug, 2019

समुद्र के उत्तर और हिमालय पर्वत के दक्षिण में जो देश है उसका नाम भारत है जहां निवास करने वाली संतति भारतीय कहलाती है।भारतवर्ष जो देवों की भूमि और ऋषि-मुनियों की तपोभूमि बना जहां मानवता की पहली सनातन संस्कृति का जन्म हुआ, जिसकी छह ऋतु वाले दिव्य वातावरण में ज्ञानी, विज्ञानी और त्यागी पैदा हुए और देश को विश्व गुरु के सर्वोच्च सिंहासन पर आसीन किया और जिन्होंने इस धरा को मां कहकर पुकारा, यह उनकी मातृभूमि है। इसकी भव्यता और समृद्धि को देखने जाने कितने आक्रांत आए लेकिन मां के सपूतों ने इसकी रक्षा करते हुए उसकी तरफ उठने वाली हर उंगली को जमीनदोज कर दिया। उन्हीं में से एक अंग्रेजों को पहचानने में हमसे भूल हुई। उन्होंने आस्तीन के सांप की तरह ऐसा डसा कि कई दशकों तक उनके विरुद्ध आवाज उठाने की हमारी हिम्मत ही जाती रही। भारत मां गुलामी की बेड़ियों में जकड़ गई। आखिरकार 29 मार्च1857को स्वतंत्रता संग्राम का श्रीगणेश हुआ। फिरंगियों को भारत से खदेड़ने के लिए सभी जातियों समुदायों और वर्गों ने एक होकर अपने अस्त्र-शस्त्र उठाए।आजादी की यह अलख मैदानी क्षेत्रों से होते हुए पहाड़ी क्षेत्रों के गांव-गांव तक पहुंची। पहाड़ी क्षेत्र हिमाचल में भी आजादी के परवाने अंग्रेजों को खदेड़ने के लिए उठ खड़े हुए।इन गिने चुने पहाड़ी वीरों में एक नाम सशक्त रूप से कुल्लू क्षेत्र के वीर योद्धा कुंवर प्रताप सिंह का आता है जिनकी अगुवाई में कुल्लू क्षेत्र के सभी युवा अंग्रेजों के विरुद्ध जंग के लिए तैयार हुए थे और धर्मशाला से आई अंग्रेजी सेना को वशलेऊ दर्रे पर जो वर्तमान में जलोड़ी दर्रे के नजदीक है, कुंवर प्रताप सिंह ने साथी सैनिकों के साथ 3 दिनों तक टक्कर दी थी। लेकिन कुंवर प्रताप सिंह अपने साथी को बचाते हुए अंग्रेजी सेना द्वारा घेर लिए गए। अंग्रेजी सरकार ने उन्हें आम सभा में फांसी की सजा देने का आदेश दिया इस प्रकार कुंवर प्रताप सिंह अपने क्षेत्र की जनता की आजादी का स्वप्न साकार करने की राह पर तीन अगस्त को शहीद हुए। इनका बलिदान किसी भी तरह से अन्य स्वतंत्रता सेनानियों से कम नहीं है। इनके अविस्मरणीय योगदान से क्षेत्र की युवा पीढ़ी को अवगत करवाने का प्रयास निरंतर होना चाहिए ताकि युवा पीढ़ी उनसे प्रेरणा लेकर देश के उत्थान में अपना अहम योगदान दे सके इस महान क्रांतिकारी का नाम सदैव कुल्लू घाटी के इतिहास में स्वर्ण अक्षरों से लिखा जाएगा। पूरी घाटी के लिए यह गौरव का विषय है कि मोहल स्तिथ नेचर पार्क में तीन अगस्त को इनका स्मारक बनाने हेतु भूमि पूजन का आयोजन किया गया जिसमें प्रशासन के साथ समाज के कई गणमान्य नागरिक उपस्थित रहे।विद्यालय के चेयरमैन कुंवर रीपुदमन् सिंहजी,विद्यालय की प्रबंध निदेशक,शैक्षिक विभाग, श्रीमती ललिता कंवर विशेष रूप से उपस्थित रहे क्यों कि कुंवर रीपुदमन सिंह कुंवर प्रताप सिंह के वंशज हैं।नेचर पार्क जैसी जगह में जहां बच्चों, जवानों और बुजुर्गों से लेकर कई पर्यटकों का भी आना जाना रहता है वहां शहीद कुंवर प्रताप सिंह का स्मारक स्थापित करना एक वरदान साबित होगा।बच्चों और युवा पीढ़ी को अपने गौरवमई इतिहास के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी प्राप्त होगी और साथ ही वे देश प्रेम व देशभक्ति के लिए प्रेरित होंगे।